AU: कश्ती भी नही बदली ,
दरिया भी नही बदला ,
और दूब्नेवालों का जज्बा भी नही बदला,
है इश्क-ऐ-समुन्दर ऐसा,
एक उमर से भी यारों ,
मंजिल भी नही पायी, रास्ता भी नही बदला।
FA: इश्क है ही ऐसा की इसमे हर ज़ख्म मज़ा देता है,
नजाने कितने बार इस समुन्दर में डूबे हैं पर,
हर बार उनको पाने का जज्बा,
दीवानगी की एक और हद पार कर गया है।
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Badhiya! :)
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